नई दिल्ली (मनोज कुमार): सुप्रीम कोर्ट में न्याय की देवी की नई मूर्ति स्थापित की गई है, जिसमें कई महत्वपूर्ण बदलाव किए गए हैं। नई मूर्ति से देवी की आंखों पर लगी पट्टी हटा दी गई है और हाथ में तलवार की जगह संविधान की पुस्तक दी गई है। यह बदलाव भारत के चीफ जस्टिस (CJI) डीवाई चंद्रचूड़ के निर्देश पर किए गए हैं। इन बदलावों का उद्देश्य यह संदेश देना है कि भारत में कानून अंधा नहीं है, बल्कि हर मामले को संवेदनशीलता से देखा जाता है।

नई मूर्ति को सुप्रीम कोर्ट के जजों की लाइब्रेरी में लगाया गया है। CJI डीवाई चंद्रचूड़ ने खुद इस मूर्ति के निर्माण का आदेश दिया था। पुरानी मूर्ति में आंखों पर पट्टी यह दर्शाती थी कि कानून सबके साथ समान रूप से व्यवहार करता है, जबकि हाथ में तलवार कानून की शक्ति और अपराधियों को दंडित करने की क्षमता का प्रतीक थी। लेकिन वर्तमान समय में यह प्रतीक उचित नहीं समझे गए, इसलिए बदलाव किए गए हैं।
हालांकि, नई मूर्ति में एक चीज़ को बरकरार रखा गया है तराजू। देवी के एक हाथ में अभी भी तराजू है, जो यह दर्शाता है कि न्यायालय किसी भी फैसले पर पहुंचने से पहले दोनों पक्षों की बात को ध्यान से सुनता है। तराजू संतुलन और निष्पक्षता का प्रतीक है। 

न्याय की देवी, जिसे हम अदालतों में देखते हैं, मूल रूप से यूनान की देवी जस्टिया हैं, जिनके नाम से 'जस्टिस' शब्द लिया गया है। उनकी आंखों पर बंधी पट्टी निष्पक्ष न्याय का प्रतीक मानी जाती थी। 17वीं शताब्दी में एक अंग्रेज अधिकारी इस मूर्ति को भारत लाए थे, और 18वीं शताब्दी में ब्रिटिश शासन के दौरान न्याय की देवी की मूर्ति का व्यापक रूप से इस्तेमाल होने लगा। आज़ादी के बाद भी भारत ने इस प्रतीक को अपनाए रखा, लेकिन समय के साथ इसमें बदलाव की आवश्यकता महसूस हुई, जिसे अब पूरा किया गया है।