पंजाब एवं हरियाणा हाई कोर्ट एक तरफ जजों की भारी कमी से जूझ रहा है, जहां 85 स्वीकृत पदों के मुकाबले सिर्फ 51 जज कार्यरत हैं। वहीं, यह कोर्ट लंबित मामलों की संख्या में लगातार कमी लाने में सफल रहा है।

जनवरी 2024 में जहां लंबित मामलों की कुल संख्या चार लाख 32 हजार 227 थी जो अब यह घटकर चार लाख 30 हजार 412 रह गई है। यानी हर महीने औसतन 365 मामलों का बोझ कम हुआ है। हाई कोर्ट ने पुराने केसों की सुनवाई को प्राथमिकता देते हुए अपीलों व सिविल मामलों में उल्लेखनीय गिरावट हासिल की है।

हाई कोर्ट द्वारा की गई ठोस पहल से सेकंड अपील जैसे भारी रिकॉर्ड वाले मामलों की संख्या 48 हजार 386 से घटकर 47 हजार 633 हो गई है। सिविल केसों की संख्या 2 लाख 68 हजार 279 से घटकर 2 लाख 62 हजार 54 तक आ गई है। वर्ष भर से अधिक समय से लंबित सिविल और क्रिमिनल मामलों का प्रतिशत भी 85% से घटकर अब 79.74% रह गया है।

नेशनल ज्यूडिशियल डाटा ग्रिड के आंकड़ों के अनुसार एक से तीन साल से लंबित मामले 76,433 (18%) से घटकर 69,644 (16%) हो गए हैं। तीन से पांच साल पुराने मामले 34,653 (8%) से घटकर 31,975 (7%) हुए हैं। पांच से 10 साल से अटके केस 1,29,122 (30%) से घटकर 1,21,712 (28%) रह गए। 10 साल से अधिक पुराने मामले 1,26,854 (29%) से घटकर 1,19,885 (28%) हो गए हैं।

चीफ जस्टिस शील नागू के आदेशानुसार साल 2000 तक के पुराने मामलों, वरिष्ठ नागरिकों, महिलाओं, दिव्यांगजनों, बच्चों, समाज के वंचित वर्गों, भ्रष्टाचार से जुड़े मामलों, सुप्रीम कोर्ट द्वारा वापस भेजे गए केसों व निचली अदालतों में रुके मामलों के निस्तारण को शीर्ष प्राथमिकता दी जा रही है।

विशेष लिस्टिंग पॉलिसी के अंतर्गत 1994 तक के मामलों को अर्जेंट मोशन कॉज लिस्ट में शामिल किया जा रहा है, जबकि 1995 से 1999 तक के केसों को भी तेजी से निपटाया जा रहा है। ताकि वर्षों से रुके मुकदमों के निपटने की रफ्तार बढ़ सके।

कोर्ट में सुनवाई की गति बढ़ाने के लिए कुछ बेंचें सुबह नौ बजे से ही काम शुरू कर रही हैं। खासतौर पर वे जो जमानत याचिकाएं सुनती हैं। चीफ जस्टिस स्वयं 9:30 बजे से कोर्ट में बैठकर अर्जेंट मामलों की सुनवाई कर रहे हैं। कई बेंचें देर शाम तक मामलों की सुनवाई कर रही हैं।