इंदौर (ज़ाहिद खान): सोशल मीडिया ने दुनिया को करीब लाने का वादा किया था, मगर इसने सच और झूठ के बीच की लकीर को ही मिटा दिया। पहले झूठ को पकड़ने के लिए सुबूत चाहिए होते थे, अब AI और एडिटिंग के ज़रिए झूठ को ऐसा चमकाया जाता है कि सच से ज़्यादा असली लगने लगता है। फेक न्यूज़, मॉर्फ़ किए गए वीडियो, और मनगढ़ंत कहानियों की बाढ़ ने समाज को गुमराह करना शुरू कर दिया है और सबसे ज़्यादा इसका असर हमारी नई पीढ़ी पर हो रहा है।

आज बच्चे और नौजवान सोशल मीडिया पर जो देखते हैं, वही उनकी सच्चाई बन जाता है। AI की ताकत ने झूठ को इतनी सफाई से पेश करना शुरू कर दिया है कि लोग बिना सोचे-समझे उसे सच मान लेते हैं। नतीजा? नई पीढ़ी भ्रमित हो रही है, असल हक़ीक़त से दूर भाग रही है और झूठ के मायाजाल में फँसती जा रही है।

कैसे बचे?

1. सोचने-समझने की आदत डालें– बच्चों को सच्चाई की तह तक जाने की आदत डालनी होगी। हर वायरल खबर पर भरोसा न करें, पहले तस्दीक करें।

2. किताबों से रिश्ता जोड़ें– सोशल मीडिया की जगह इल्म के हकीकी ज़राय किताबें से रूबरू करे। बच्चों को पढ़ने और गौर करने की आदत डालें।

3. दीन और अख़लाक़ सिखाएँ– सच और झूठ का फ़र्क़ समझाने के लिए इस्लामी तालीमात से जुड़ना ज़रूरी है। कुरआन और हदीस हमें बताती है कि झूठ फैलाना कितना बड़ा गुनाह है।

4. मस्जिदों मे, खासकर जुमे मे इसको मौज़ू बनाना फ़र्ज़ हो चुका है क्यूंकि इंसानियत पर आने वाले तमाम फितनो मे AI सबसे बड़ा फितना है जो दुनिया से सच और झूठ के फर्क को ख़त्म कर रहा है।

5. सोशल मीडिया को नकारना हल नहीं है, बल्कि इसका सही इस्तेमाल सिखाना ज़रूरी है।

अगर हम आज अपनी नई पीढ़ी को सच और झूठ में फ़र्क़ करना नहीं सिखाएँगे, तो कल यही फरेब उनका सच बन जाएगा। हमें उन्हें आँखें खोलकर देखने की तालीम देनी होगी, वरना यह झूठ का समंदर हमारी नस्लों को बहा ले जाएगा।