नाम छोटा सा है अल्फ़िया ख़ान लेकिन उसके हौसलों का क़द ऐसा कि आसमान भी नज़रें झुका ले। वो बच्ची जो तंग गलियों से निकलकर उम्मीदों का उजाला बन गई। जिसने ये साबित कर दिखाया कि कामयाबी महंगे स्कूलों या बड़े घरों की जागीर नहीं होती बल्कि मेहनत, सब्र और बेआवाज़ आंसुओं की तर्जुमानी होती है।

खजराना की वो तंग गली, जहाँ रौशनी से ज़्यादा अंधेरे हैं और फ़राग़त से ज़्यादा तंगी का डेरा। उसी गली में एक छोटा सा घर है कमज़ोर दीवारों वाला, मगर उम्मीदों से रोशन। वहीं रहती है अल्फ़िया, जिसकी आँखों में ऐसे ख़्वाब पलते हैं जो उसके घर की छत से कहीं ऊँचे उड़ते हैं।

जब दूसरे बच्चे खेल का बहाना तलाशते थे तब अल्फ़िया किताबों में खो जाने के लिए एक पुरसुकून कोना ढूंढा करती जो उसका घर देने से क़ासिर था। वो घर, जो एक शोरगुल और भीड़-भाड़ भरे इलाके में था, जहाँ हर वक़्त की हलचल उसके ख्वाबों को दबोचने लगती लेकिन अल्फ़िया ने कभी शिकवा नहीं किया। उसने हालात से समझौता नहीं बल्कि उनसे लड़ने का फैसला किया। 

उसने अपने स्कूल ज़ीनत पब्लिक में वो कोना तलाश कर लिया। जब छुट्टी के बाद सारे बच्चे अपने घरों को लौट जाते तब अल्फ़िया उसी तन्हा कोने में बैठकर पढ़ाई में डूब जाती।

वो तन्हा कोने, वो भीगी हुई कॉपियाँ, वो रातों की जागी हुई आंखें और हर सजदे में मांगी गई दुआएँ जिसे अल्लाह ने सुन लिया। 

उसके शौक और जज़्बे को देखकर स्कूल मैनेजमेंट ने उसकी फ़ीस माफ़ कर दी और ये कोई रहम नहीं था बल्कि उस जज़्बे का एहतराम था जिसे अल्फ़िया हर रोज़ अपने लहू की स्याही से तहरीर कर रही थी।

10वीं का रिज़ल्ट आया और खजराना की बेटी ने 93.2% लाकर वो काम कर दिखाया जिसे सुनकर आँखें भर आईं। इलाक़े में दूसरा नंबर, लड़कियों में शायद सबसे ऊपर। ये सिर्फ नंबर नहीं थे। ये उसकी हर कुर्बानी, हर कोशिश, हर जद्दोजहद और हर आंसू का इनाम था।

उसकी ये कामयाबी अकेली उसकी नहीं है बल्कि उसके वालिद जनाब निज़ामुद्दीन साहब की भी है जो मस्जिद में नमाज़ पढ़ाते हैं और घर में अल्फ़िया के लिए दुआओं की चटाई बिछाए रखते हैं। ये ज़ीनत पब्लिक स्कूल की भी जीत है, जिन्होंने उसे सिर्फ़ एक स्टूडेंट नहीं बल्कि एक अमानत समझा।

अल्फ़िया, तुम सिर्फ एक नाम नहीं ही, एक पैग़ाम हो जिसने ये साबित कर दिया की अगर हालात काँटे बन जाएँ तो हिम्मत से उन्हें फूलों में बदला जा सकता है।

तुमने ये भी साबित कर दिया कि अगर किसी बाप का भरोसा, किसी माँ की दुआ और किसी स्कूल की रहनुमाई मिल जाए तो एक बेटी पहाड़ों से भी ऊँची उड़ान भर सकती है।

हर बाप अगर अपनी बेटी को यक़ीन, भरोसा और हौसला दे दे तो हर बेटी अल्फ़िया बन सकती है। 

अल्लाह हर बेटी को अल्फ़िया जैसा जज़्बा, सब्र और हौसला अता फरमाए। आमीन।

- ज़ाहिद खान