पिपरवार कोयलांचल एक बार फिर नक्सली आतंक की चपेट में है। बुधवार को पुरनाडीह, चिरैयाटांड़ और अशोका परियोजनाओं के दर्जनों प्रमुख कांटाघरों में गतिविधियां ठप हो गईं, जिससे सीसीएल को लाखों रुपये का नुकसान हुआ है। कभी कोयले की ट्रकों और मजदूरों की चहल-पहल से गुलजार रहने वाला यह क्षेत्र अब सन्नाटे और दहशत से घिरा हुआ है।

सूत्रों के अनुसार, नक्सलियों ने सीसीएल के कांटा कर्मचारियों और कोयला लिफ्टरों को सीधे व्हाट्सएप कॉल के जरिए जान से मारने की धमकी दी। धमकियां टीएसपीसी के चिराग के नाम से आईं, जिनमें स्पष्ट रूप से काम बंद करने का फरमान सुनाया गया। इस डर से बुधवार दोपहर के बाद तीनों कांटाघरों पर ताले लग गए और रोड सेल कोयले की आवाजाही पूरी तरह ठप हो गई।

कोयला लिफ्टरों ने बताया कि दो दिनों से दोपहर करीब 2:30 बजे के बाद ही लोडिंग की गाड़ियां रवाना की जा रही थीं, लेकिन गुरुवार को पूरी तरह वजन कार्य बंद करने का निर्णय ले लिया गया। इसके चलते सीसीएल को लाखों रुपये का राजस्व नुकसान हुआ है, जबकि स्थानीय मजदूरों की रोजी-रोटी पर भी संकट खड़ा हो गया है।

पुरनाडीह-पिपरवार थाना क्षेत्र के आसपास रहने वाले सैकड़ों परिवार जो कोयला परियोजनाओं पर निर्भर हैं, इस समय अपने घरों में कैद हैं। लोगों का कहना है कि प्रशासनिक सुरक्षा की कमी ने डर को और गहरा कर दिया है।

घटना की गंभीरता को देखते हुए टंडवा एसडीपीओ प्रभात रंजन बरवार और पिपरवार थाना प्रभारी अभय कुमार ने मौके पर पहुंचकर कर्मचारियों से बातचीत की और कांटाघरों को दोपहर तीन बजे से चालू करने का निर्देश दिया।

हालांकि, कर्मचारियों ने पहले सुरक्षा की मांग की। देर शाम कांटाघरों को आंशिक रूप से खोला गया, लेकिन क्षेत्र में भय का वातावरण अब भी जस का तस बना हुआ है। यह घटना महज तीन कांटाघरों का बंद होना नहीं है, बल्कि यह कोयलांचल में नक्सलियों के बढ़ते वर्चस्व की गंभीर चेतावनी है।

सवाल यह है कि राज्य सरकार और प्रशासन इस चुनौती से निपटने के लिए कितनी तत्परता से कार्रवाई करेगा? क्या कोयलांचल के लोग हमेशा इस खौफ के साए में जीने को मजबूर रहेंगे? बावजूद इसके, पिपरवार जैसे संवेदनशील क्षेत्रों में नक्सलियों की पकड़ अब भी चिंता का विषय बनी हुई है।